तुमने सिर्फ़ उड़ान देखी है ............
पीड़ा नहीं देखी मेरे परों की
जो तुमने क़तर डाले
ख़ून नहीं देखा तुमने बहता हुआ
क्योंकि तुम
देखना ही नहीं चाहते दर्पण
तुम्हें तो चाहिए बस समर्पण
हर हाल में,
हर सूरत में
क्योंकि तुम शोषक हो जन्म-जन्मान्तर से
संस्कार पुराने जायेंगे नहीं
सुविचार तुम्हें भायेंगे नहीं
लेकिन मैं !
मैं तो माँ हूँ................
सब की माँ हूँ
मानव तो मानव
रब की माँ हूँ
इसलिए ममता से आकंठ लाचार हूँ........
और हर दर्द सहने के लिए तैयार हूँ
मैं दर्द बाँटती नहीं,
पी लेती हूँ
वेदना को गाती नहीं,
जी लेती हूँ
इसीलिए मेरी तुलना धरती से की गई है रे पुरूष !
और तेरी आसमान से ।
क्योंकि तू तो जब तब रो लेता है
और अपने सारे पाप धो लेता है
लेकिन मैं !
मैं वह तपस्विनी............
जिसका कोई भी क्षण पतित नहीं होता
साँस का स्पन्दन भी
धर्माचरण की लय से रहित नहीं होता
( कवि अलबेला खत्री के ब्लॉग 'नारी रचना अद्भुत रचना' से साभार )
प्रस्तुति : रानी सोनल
प्रस्तुति : रानी सोनल
नारी शक्ति के सम्मान, स्वाभिमान और स्वावलंबन के प्रतीक श्री अजीत एम धनदे |
जिसका कोई भी क्षण पतित नहीं होता
ReplyDeleteसाँस का स्पन्दन भी
धर्माचरण की लय से रहित नहीं होता
ઉત્તમ કાવ્ય નો અનુભવ ધરાવતી સુંદર રચના માટે આભાર
-સવજી ઠાકર રાજકોટ
so nice poem
ReplyDeletei like it
सुन्दर अभिव्यक्ति..शुभकामनाएं !
ReplyDeleteBLOG PAHELI
तुमने सिर्फ़ उड़ान देखी है ............
ReplyDeleteपीड़ा नहीं देखी मेरे परों की
मैं दर्द बाँटती नहीं,
ReplyDeleteपी लेती हूँ
वेदना को गाती नहीं,
जी लेती हूँ
vandemataram
बहुत सुन्दर रचना , सशक्त प्रस्तुति, सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.
देखना ही नहीं चाहते दर्पण
ReplyDeleteतुम्हें तो चाहिए बस समर्पण
हर हाल में,
हर सूरत में///
सशक्त सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
बहुत सुंदर रचना । नारी के व्यक्तित्व का सही और सच्चा चित्रण ।
ReplyDelete